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{{KKRachna
|रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र
|संग्रह=त्रिकाल संध्या / भवानीप्रसाद मिश्र
}}
[[Category:बाल-कविताएँ]]
बहुत नहीं सिर्फ़ चार कौए थे काले ,<br>
उन्होंने यह तय किया कि सारे उडने वाले<br>
उनके ढंग से उडे,रुकें , खायें और गायें<br>
वे जिसको त्यौहार कहें सब उसे मनाएं<br><br>
हंस मोर चातक गौरैये किस गिनती में<br>
हाथ बांध कर खडे हो गये सब विनती में<br>
हुक्म हुआ , चातक पंछी रट नहीं लगायें<br>पिऊ - पिऊ को छोडें कौए - कौए गायें<br><br>
बीस तरह के काम दे दिए गौरैयों को<br>
खाना - पीना मौज उडाना छुट्भैयों को<br>
कौओं की ऐसी बन आयी पांचों घी में<br>
बडे - बडे मनसूबे आए उनके जी में<br><br>
उडने तक तक के नियम बदल कर ऐसे ढाले<br>
उडने वाले सिर्फ़ रह गए बैठे ठाले<br>
आगे क्या कुछ हुआ सुनाना बहुत कठिन है<br>
यह दिन कवि का नहीं , चार कौओं का दिन है<br><br>
उत्सुकता जग जाए तो मेरे घर आ जाना<br>
लंबा किस्सा थोडे में किस तरह सुनाना ?