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{{KKRachna
|रचनाकार=शकील बँदायूनीबदायूँनी|संग्रह=}} {{KKCatGhazal}}<poem> हंगामा-ए-ग़म से तंग आकर इज़्हार-ए-मुसर्रत कर बैठे मशहूर थी अपनी ज़िंदादिली दानिस्ता शरारत कर बैठे
हंगामाकोशिश तो बहोत की हमने मगर पाया न ग़म-ए-ग़म से तंग आकर इज़्हारहस्ती का मफ़र वीरानी-ए-मुसर्रत कर बैठे <br>मशहूर थी अपनी ज़िंदादिली दानिस्ता शरारत दिल जब हद से बड़ी घबरा के मोहब्बत कर बैठे <br><br>
कोशिश तो बहोत की हमने मगर पाया नज़रों से ग़मकरते पुर्सिश-ए-हस्ती का मफ़र <br>ग़म ख़ामोश ही रहना बहतर था वीरानी-ए-दिल जब हद से बड़ी घबरा के मोहब्बत कर दीवानो को तुमने छेड़ दिया वल्लाह क़यामत कर् बैठे <br><br>
नज़रों से न करते पुर्सिश-ए-ग़म ख़ामोश ही रहना बहतर था <br>दीवानो को तुमने छेड़ दिया वल्लाह क़यामत कर् बैठे <br><br> हर चीज़ नहीं एक मर्कज़ पर एक रोज़ इधर इक रोज़ उधर <br>नफ़रत से न देखो दुश्मन को शायद ये मोहब्बत कर बैठे <br><br/poem>
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