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{{KKRachna
|रचनाकार=नाज़िम हिक़मत
|अनुवादक=्दिगम्बरदिगम्बर
|संग्रह=
}}
मेरे पास एक पेन्सिल थी
जिस साल मैं क़ैदखाने क़ैदख़ाने में आया.
घिस गई एक ही हफ़्ते में वह लिखते-लिखते.
और अगर तुम पूछो उस पेन्सिल से, वो कहेगी —
उस्मान को क़त्ल के जुर्म में क़ैद किया गया था
सात साल की सज़ा काट कर बाहर निकला वह
उस रोज़ जब मैं क़ैदखाने क़ैदख़ाने में आया.
कुछ दिन घूमता रहा वह बाहर
फिर तस्करी के जुर्म में गिरफ़्तार हुआ।
अब दस साल के हैं
वे बच्चे जो अपनी माँ की कोख से जन्मे उस साल
जब मैं इस क़ैदखाने क़ैदख़ाने में आया था,
और उस साल जन्मे, दुबले पैरों पर लड़खड़ाते बछेड़े
अब चौड़े पुट्ठे वाले घोड़ों में तब्दील हो चुके हैं।
रोटी बिलकुल सफ़ेद हुआ करती थी, कपास की तरह,
जिस साल मैं क़ैदखाने क़ैदख़ाने में आया।
बाद में राशन बंध गया,
और यहाँ, इस दीवार के भीतर हम एक-दूसरे को पीटते थे