भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
उन्हीं को रूह की साँसों में जला रखा है
कभी ये चूमती हैं लब तेरे कभी रुख़सार तेरे
तूने ज़ुल्फ़ों को बहुत सर पे चढ़ा रखा है
</poem>