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कविता कोश पर भक्त सुदामा चरित के अलग-अलग अंश हैं, पूरी पुस्तक क्रमबद्ध कर रहा हूँ |
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'''वन्दना'''
बन्दहुँ राम जो पूरण ब्रह्म है, वे ही त्रिलोकी के ईश कहावें |
श्रीगुरु ! राह कृपामय हो, हम पे नज़रें गुण को नित गावें ||
शारद शेष महेश नमो, बलिहारी गणेश हमेश मनावें |
बुद्धि प्रकाश करो घट भीतर, कृष्ण-सुदामा चरित्र बनावें | |
राम-राम जप बावरे साधन यही विवेक |
इस साधन की ओट से तर गए भक्त अनेक ||
परम सनेही राम प्रिय सुप्रिय गुरु महाराज |
चरन परहुँ कर जोर कर वन्दहुँ संत समाज ||
प्रभु चरित्र में चित्त रचे जन्म जन्म यहि काम |
भक्ति सदा सतसंग उर कृपा करहुँ श्रीराम ||
बंदहूँ शंकर-सुत हरखि मंगल मयी महेश |
सकल सृष्टि पूजन करे तुमरी सदा गणेश ||
नमन करत हूँ शारदा सकल गुणन की खान |
नमहूँ सुकवि पुनि देव सब चरन कमल को ध्यान |
प्रभु चरित्र आनन्द अति रुचिकर करहूँ बखान ||
जाही सुने चित देय नर पावत पद निर्वाण ||
लिखूं सुदामा की कथा यथा बुद्धि है मोर |
करहूँ कृपा शिवदीन पर नगर नन्द किशोर ||
'''परिचय और स्थिति'''
भक्त सुदामा ब्रह्मण थे,
रहते थे देश विदर्भ नगर,
नित मीठे बैन बोलती थी,
नहीं ध्यान बुरा दिल पर लाती |
'''पति -पत्नी वार्ता'''
इक रोज कहा कर जोर दोऊ,
पति भूख से प्राण निकलते हैं,
इसलिए नहीं धनवान किया,
सात्विक भाव ही रहा सदा,
प्रिय दिल में कब अरमान किया | '''सुदामा- द्वारपाल से'''
महाराज कृष्ण क्या करते है, है उनसे काम मेरा भाई।
मैं ब्राह्मण द्रविड़ देश का हूं, दिल ख्याल करा देना सारा।।
'''द्वारपाल- कृष्ण से'''
जा करके द्वारपाल ने जब श्रीकृष्ण चन्द्र से हाल कहा।