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|रचनाकार=धीरेन्द्र
|संग्रह=करूणा भरल ई गीत हम्मर / धीरेन्द्र
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<poem>
घुरऽ हे घूरऽ संगी ! मिथिलाक पूत तोंही !!
बजबै छ माए तोहर मिथिला !
दोसर भाषामे संगी गीत तोहर गमकइ
तोहर भूषामे संगी रूप तोहर चमकइ।
तोहर इजोत बले दुनियाँ उद्भासित।
घरमे पसरल अन्हार।
आबऽ-आबऽ हे संगी, नव-घर उठाबी।
सड़ल-साड़ल ई खोपड़ी खसाबी।
करीरे भवन तैयार।
सहसन न होइ छै माइकेर वेदन।
हिया के रे शालइ जननीक रोदनं
पुरूवमे देखऽ उगलइ सुरूजदेब,
पछिममे उगलइ चान।
सबतरि तोरे दीप्ति देखाइछ
दुनियाँ भेल उजयार।
कानि रहल अछि मनकेर कोइली
देखि-देखि ध्रुप्प अन्हार।
सुनऽ सुनऽ हे संगी।
मिथिलाक पूत तोंही।
कहबइ छ माए तोहर शिथिला।
हिचुकि-हिचुकिकें
कानिकें खीझिकें
बजबै छ माए तोहर मिथिला।
</poem>
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