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{{KKRachna
|रचनाकार=धीरेन्द्र
|संग्रह=करूणा भरल ई गीत हम्मर / धीरेन्द्र
}}
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<poem>
आएल मास हेमन्त आ कि गाम पड़ि गेल मोन यौ।
करू की हम नहि फुरै अछि, अछि उपाये कोन यौ।
कतहु कटनी, कतहु झटनी, कतहु दौनिक सोर यौ।
नीड़-हीन विहंग जेकाँ आँखि पूरित नोर यौ।
अरे ! आएल मास हेमन्त
मोनक विहग उड़ल अकाशमे,
दूर अछि जइ भूमिसँ ओ
तकर ताकक आशमे।
परिस्थितिकेर बोध होइतहि मोन भए गेल घोर यौ।
दूर भए गेल हमर हेतुक अपन जननीक कोर यौ।
</poem>
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आएल मास हेमन्त आ कि गाम पड़ि गेल मोन यौ।
करू की हम नहि फुरै अछि, अछि उपाये कोन यौ।
कतहु कटनी, कतहु झटनी, कतहु दौनिक सोर यौ।
नीड़-हीन विहंग जेकाँ आँखि पूरित नोर यौ।
अरे ! आएल मास हेमन्त
मोनक विहग उड़ल अकाशमे,
दूर अछि जइ भूमिसँ ओ
तकर ताकक आशमे।
परिस्थितिकेर बोध होइतहि मोन भए गेल घोर यौ।
दूर भए गेल हमर हेतुक अपन जननीक कोर यौ।
</poem>