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या मत मानो तो वह भी सच्चा है। <br>
यों सच्चे हैं भ्रम भी, सपने भी <br>
सच्चे हैं अजनबी--और अजनबी—और अपने भी। <br> <br>
देश-देश की रंग-रंग की मिट्टी है: <br>
हैं घाट? स्वयं मैं क्या हूँ? है बाट? देखता हूँ मैं ही। <br>
पतवार? वही जो एकरूप है सब से-- से— <br>
इयत्ता का विराट्। <br> <br>
यों घर--जो घर—जो पीछे छूटा था-- था— <br>
वह दूर पार फिर बनता है <br>
यों भ्रम--यों सपना--यों भ्रम—यों सपना—यों चित्-सत्य <br>
लीक-लीक पथ के डोरों से <br>
नया जाल फिर तनता है... <br> <br>
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