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माँ की याद / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
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04:11, 4 जून 2016
बाँह दो चमकारती–सी बढ़ रही है,
साँझ से कह दो बुझे दीपक जलाये।
शोर डैनों में छिपाने के लिए अब,
शोर माँ की गोद जाने के लिए अब,
Sharda suman
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