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अच्छे कवियों को सब हिदी वाले नकारते
 
और बुरे कवियों के सौ-सौ गुण बघारते
 
ऎसा क्यों है, ये बताएँ ज़रा, भाई अनिल जी
 
अच्छे कवि क्यों नहीं कहलाते हैं सलिल जी
 
क्यों ले-दे कर छपने वाले कवि बने हैं
 
क्यों हरी घास को चरने वाले कवि बने हैं
 
परमानन्द और नवल सरीखे हिन्दी के लोचे
 
क्यों देश-विदेश में हिन्दी रचना की छवि बने हैं
 
क्यों शुक्ला, जोशी, लंठ सरीखे नागर राठी
 
हिन्दी कविता पर बैठे हैं चढ़ा कर काठी
 
पूछ रहे अपने ई-पत्र में सुशील कुमार जी
 
कब बदलेगी हिन्दी कविता की यह परिपाटी
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