भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatAngikaRachna}}
<poem>
सुनै छियै कहियो गाँवोॅ के हवाघन्नोॅ धुंध छैबड़ी उदार छेलै !आरू स्मृति रोॅ संझौती झुरमुटमहाँकोॅ सें करै छेलै गमगमलोरैलोॅ नजर खोजै छैगाँव, बचपन,गलबाँहीआरो ओकरा ऊ पातरोॅ रं नदीजै में हमरी माय के आँचलखिलखिल करैकनियाँ नाँखी घोघोॅ रोॅ बीचोॅ सें टपकै दुलार छेलै !तही लेॅ उछलैनें छेलैचारो दिसें नें गांवोॅ के रीतिझाँकतेॅ ओकरोॅ गोल-रेवाज !गोल चेहराआरो कवि सिनीलोर, तेज, ममता आरू झिड़की मेंदौड़ी-दौड़ी ऐलोॅ बनौटीपन नै छेलै गाँव मजकि बेबसी मेंअखनी वहेॅ गाँव छेकै !नागफनी रं लागै कांछा ।गाँवोॅ के हवा बीमार छै,चैखटी पर राखलोॅ दीया मेंशहरोॅ सें ऐलोॅ सब कुछ उधार छै !जबेॅ-जबेॅ वैं झाँकैदिखै ओकरोॅ झुर्रीलोगोॅ के आगूं लाज बेकार छैथकचुरुओॅ,मायूस आरो कवि छै कि आरी पर बैठी केॅउदास नजरगाय-गाय झुम्मर में खोजै संसार छै !जेकरोॅ मानीकोय्यो मानी नै छेलै ।
</poem>
Mover, Protect, Reupload, Uploader
6,612
edits