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गाँवोॅ के हवा / अचल भारती

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घन्नोॅ धुंध छैसुनै छियै कहियो गाँवोॅ के हवाआरू स्मृति रोॅ संझौती झुरमुटबड़ी उदार छेलै !लोरैलोॅ नजर खोजै छैगाँव, बचपनमहाँकोॅ सें करै छेलै गमगम, गलबाँहीऊ पातरोॅ रं नदीजै में हमरी माय के आँचलखिलखिल करैकनियाँ नाँखी घोघोॅ रोॅ बीचोॅ आरो ओकरा सेंटपकै दुलार छेलै !झाँकतेॅ ओकरोॅ गोलतही लेॅ उछलैनें छेलैचारो दिसें नें गांवोॅ के रीति-गोल चेहरारेवाज !लोर, तेज, ममता आरू झिड़की मेंआरो कवि सिनीबनौटीपन नै दौड़ी-दौड़ी ऐलोॅ छेलैमजकि बेबसी गाँव मेंनागफनी रं लागै कांछा ।अखनी वहेॅ गाँव छेकै !चैखटी पर राखलोॅ दीया मेंगाँवोॅ के हवा बीमार छै,जबेॅ-जबेॅ वैं झाँकैदिखै ओकरोॅ झुर्रीशहरोॅ सें ऐलोॅ सब कुछ उधार छै !थकचुरुओॅलोगोॅ के आगूं लाज बेकार छै, मायूस आरो उदास नजरकवि छै कि आरी पर बैठी केॅजेकरोॅ मानीकोय्यो मानी नै छेलै ।गाय-गाय झुम्मर में खोजै संसार छै !
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