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पास पास थे चुभे, गड़े।मौत भी जिंदगी सी हो जाए।
दूर दूर थे, नए लगे।झूठ और सच का फ़र्क़ खो जाए।
शहर भी अजीब तिश्ना लब के सिवाय कौन है तेराजो
भीख दी तो ज़ात पूछ के।सुर्ख अहसास को भिगो जाए।
अपने ग़म में जल रही है वोपिण्ड तो छूटे वर्जनाओं से
जाइए न हाथ सेंकिए।जो भी होना है आज हो जाए।
रात जैसे लिख रही हो ख़तऐसे मत मांग हाथ फैला के
दिन कि जैसे हाथ में जो है वो भी खो गए पते।जाए।
इश्क हमने इस तरह कियामैं तवायफ़ हूँ, बेहया तो नहीं
जैसे कोई सीढ़ियाँ चढ़े।  डिगरियाँ कराहने लगीं क्या बिके कि नौकरी लगे।  औरतें कठिन न हों तो मर्द एक बार पढ़ के छोड़ दे।थोड़ी मोहलत दे, बच्चा सो जाए।
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