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प्रेम का संबंध जीवन के उद्भव से, उसके बीज-तत्व से है। दैहिक तल पर ही सही, दो आत्माओं का प्रेम-मिलन जीवन के उद्भव का कारण बनता है। प्रेम की बुनियाद में ही गहरी आसक्ति और एक-दूसरे के प्रति गहन अनुराग सक्रिय है। फलस्वरूप इसकी परिणति में जो जीवन उपलब्ध होता है उसकी सूक्ष्मतम कोशिकाओं में भी जीवन के प्रति अदम्य कामना के रूप में प्रेम विन्यस्त पाया जाता है। ललक, उत्साह, उल्लास, ऊर्जा और उछाह इस प्रेम के रूपक हैं। ये प्रेम के भी रूपक हैं और प्रेम-कविता के भी।