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{{KKRachna
|रचनाकार=महमूद दरवेश|अनुवादक=अनिल जनविजय|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>आओ ! दुख और जंज़ीर ज़ंजीर के साथियों
हम चलें कुछ भी न हारने के लिए
कुछ भी न खोने के लिए
सिवा अर्थियों के
आकाश के लिए हम गाएंगेगाएँगे
भेजेंगे अपनी आशाएँ
कारखानों और खेतों और खदानों में
हम गाएंगे गाएँगे और छोड़ देंगे
अपने छिपने की जगह
हम सामना करेंगे सूरज का
हमारे दुश्मन गाते हैं--—
"वे अरब हैं... क्रूर हैं..."
हाँ, हम अरब हैं
हम निर्माण करना जानते हैं
हम जानते हैं बनाना
कारखाने अस्पताल और मकान
विद्यालय, बम और मिसाईल
हम जानते हैं
कैसे लिखी जाती है सुन्दर कविता
और संगीत...
हम जानते हैं
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
</poem>