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Kavita Kosh से
तीरगी सदियों की पल में दूर कर जाते हैं वो
मुस्कुरा कर वह बढ़ा देते हैं बेचैनी मेरी
क्यों दिल -बेताब को मेरे किसलिए हर रोज़ तड़पाते हैं वो
एक नागिन की तरह लहराता है उनका बदन
बेरुख़ी के जाम को आँखों से छलकाते हैं वो
वह तरन्नुम है कि सुनकर झूम उठते हैं सभीउठती है फ़ज़ाजब भी महफ़िल में मेरे इस गीत नग़मात को गाते हैं वो
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