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Kavita Kosh से
नज़र के तीर से क्यों कर वो वार करता है
वगरना, मर्द तो सीने पे वार करता है
उसी के वास्ते रब ने बनाई है जन्नत
जो नेक काम नेक यहाँ बेशुमार करता है
अता हुई है मुझे , हमेशा ही रहनुमाई उसकी 'रक़ीब' क़दम-क़दम पे जो परवरदिगार सर निगूँ दरे-परवर दिगार करता है
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