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फिर से शहनाइयाँ, शामियाने में हैं
दो बड़ी कुर्सियाँ, शामियाने में हैं
जब, जहाँ चाहिये, बस लगा लीजिये
अनगिनत ख़ूबियाँ, शामियाने में हैं
 
रस्मे-जयमाल, फूलों की बरसात और
गूँजती तालियाँ, शामियाने में हैं
साथ सखियों के मिलकर सताती हैं जो
हर तरफ़ सिसकियाँ, शामियाने में हैं
मुद्दतों से यहाँ का रहा है चलन
आज भी शादियाँ, शामियाने में हैं
ये छुड़ाता है घर, गाँव, सखियाँ 'रक़ीब'
बस यही ख़ामियाँ शामियाने में हैं
 
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