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|सारणी=हल्दीघाटी / श्यामनारायण पाण्डेय
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'''त्रयोदश सर्ग: सगजो'''
<font size=4>त्रयोदश सर्ग: सगजो</font><br><br>कुछ बचे सिपाही शेष¸ हट जाने का दे आदेश। अपने भी हट गया नरेश¸ वह मेवाड़–गगन–राकेश॥1॥
कुछ बचे सिपाही शेष¸ <Br/>हट जाने का दे आदेश। <Br/>अपने भी हट गया नरेश¸ <Br/>वह मेवाड़–गगन–राकेश।।1।। <Br/><Br/>बनकर महाकाल का काल¸ <Br/>जूझ पड़ा अरि से तत्काल। <Br/>उसके हाथों में विकराल¸ <Br/>मरते दम तक थी करवाल।।2।। <Br/><Br/>करवाल॥2॥  उसपर तन–मन–धन बलिहार <Br/>झाला धन्य¸ धन्य परिवार। <Br/>राणा ने कह–कह शत–बार¸ <Br/>कुल को दिया अमर अधिकार।।3।। <Br/><Br/>अधिकार॥3॥  हाय¸ ग्वालियर का सिरताज¸ <Br/>सेनप रामसिंह अधिराज। <Br/>उसका जगमग जगमग ताज¸ <Br/>शोणित–रज–लुiण्ठत है आज।।4।। <Br/><Br/>आज॥4॥  राजे–महराजे–सरदार¸ <Br/>जो मिट गये लिये तलवार। <Br/>उनके तर्पण में अविकार¸ <Br/>आंखों आँखों से आंसू आँसू की धार।।5।। <Br/><Br/>धार॥5॥  बढ़ता जाता विकल अपार <Br/>घोड़े पर हो व्यथित सवार। <Br/>सोच रहा था बारम्बार¸ <Br/>कैसे हो मां माँ का उद्धार।।6।। <Br/><Br/>उद्धार॥6॥  मैंने किया मुगल–बलिदान¸ <Br/>लोहू से लोहित मैदान। <Br/>बचकर निकल गया पर मान¸ <Br/>पूरा हो न सका अरमान।।7।। <Br/><Br/>अरमान॥7॥  कैसे बचे देश–सम्मान <Br/>कैसे बचा रहे अभिमान! <Br/>कैसे हो भू का उत्थान¸ <Br/>मेरे एकलिंग भगवान।।8।। <Br/><Br/>भगवान॥8॥  स्वतन्त्रता का झगड़ा तान¸ <Br/>कब गरजेगा राजस्थान! <Br/>उधर उड़ रहा था वह वाजि¸ <Br/>स्वामी–रक्षा का कर ध्यान।।9।। <Br/><Br/>ध्यान॥9॥  उसको नद–नाले–चट्टान¸ <Br/>सकते रोक न वन–वीरान। <Br/>राणा को लेकर अविराम¸ <Br/>उसको बढ़ने का था ध्यान।।10।। <Br/><Br/>ध्यान॥10॥  पड़ी अचानक नदी अपार¸ <Br/>घोड़ा कैसे उतरे पार। <Br/>राणा ने सोचा इस पार¸ <Br/>तब तक चेतक था उस पार।।11।। <Br/><Br/>पार॥11॥  शक्तसिंह भी ले तलवार <Br/>करने आया था संहार। <Br/>पर उमड़ा राणा को देख <Br/>भाई–भाई का मधु प्यार।।12।। <Br/><Br/>प्यार॥12॥  चेतक के पीछे दो काल¸ <Br/>पड़े हुए थे ले असि ढाल। <Br/>उसने पथ में उनको मार¸ <Br/>की अपनी पावन करवाल।।13।। <Br/><Br/>करवाल॥13॥  आगे बढ़कर भुजा पसार¸ <Br/>बोला आंखों आँखों से जल ढार। <Br/>रूक जा¸ रूक जा¸ ऐ तलवार¸ <Br/>नीला–घोड़ारा असवार।।14।। <Br/><Br/>असवार॥14॥  पीछे से सुन तार पुकार¸ <Br/>फिरकर देखा एक सवार। <Br/>हय से उतर पड़ा तत्काल¸ <Br/>लेकर हाथों में तलवार।।15।। <Br/><Br/>तलवार॥15॥  राणा उसको वैरी जान¸ <Br/>काल बन गया कुन्तल तान। <Br/>बोला "कर लें शोणित पान¸ <Br/>आ¸ तुझको भी दें बलिदान्"।।16।। <Br/><Br/>॥16॥  पर देखा झर–झर अविकार <Br/>बहती है आंसू आँसू की धार। <Br/>गर्दन में लटकी तलवार¸ <Br/>घोड़े पर है शक्त सवार।।17।। <Br/><Br/>सवार॥17॥  उतर वहीं घोड़े को छोड़¸ <Br/>चला शक्त कम्पित कर जोड़। <Br/>पैरों पर गिर पड़ा विनीत¸ <Br/>बोला धीरज बन्धन तोड़।।18।। <Br/><Br/>तोड़॥18॥  "करूणा कर तू करूणागार¸ <Br/>दे मेरे अपराध बिसार। <Br/>या मेरा दे गला उतार¸ <Br/>"तेरे कर में हैं तलवार्"।।19।। <Br/><Br/>॥19॥  यह कह–कहकर बारंबार¸ <Br/>सिसकी भरने लगा अपार। <Br/>राणा भी भूला संसार¸ <Br/>उमड़ा उर में बन्धु दुलार।।20।। <Br/><Br/>दुलार॥20॥  उसे उठाकर लेकर गोद¸ <Br/>गले लगाया सजल–समोद। <Br/>मिलता था जो रज में प्रेम¸ <Br/>किया उसे सुरभित–सामोद।।21।। <Br/><Br/>सुरभित–सामोद॥21॥  लेकर वन्य–कुसुम की धूल¸ <Br/>बही हवा मन्थर अनुकूल। <Br/>दोनों के सिर पर अविराम¸ <Br/>पेड़ों ने बरसाये फूल।।22।। <Br/><Br/>फूल॥22॥  कल–कल छल–छल भर स्वर–तान¸ <Br/>कहकर कुल–गौरव–अभिमान। <Br/>नाले ने गाया स–तरंग¸ <Br/>उनके निर्मल यश का गाना।।23।। <Br/><Br/>गाना॥23॥  तब तक चेतक कर चीत्कार¸ <Br/>गिरा धर पर देह बिसार। <Br/>लगा लोटने बारम्बार¸ <Br/>बहने लगी रक्त की धार।।24।। <Br/><Br/>धार॥24॥  बरछे–असि–भाले गम्भीर¸ <Br/>तन में लगे हुए थे तीर। <Br/>जर्जर उसका सकल शरीर¸ <Br/>चेतक था व्रण–व्यथित अधीर।।25।। <Br/><Br/>अधीर॥25॥  करता धावों पर दृग–कोर¸ <Br/>कभी मचाता दुख से शोर। <Br/>कभी देख राणा की ओर¸ <Br/>रो देता¸ हो प्रेम–विभोर।।26।। <Br/><Br/>प्रेम–विभोर॥26॥  लोट–लोट सह व्यथा महान््¸ <Br/>महान्¸ यश का फहरा अमर–निशान। <Br/>राणा–गोदी में रख शीश <Br/>चेतक ने कर दिया पयान।।27।। <Br/><Br/>पयान॥27॥  घहरी दुख की घटा नवीन¸ <Br/>राणा बना विकल बल–हीन। <Br/>लगा तलफने बारंबार <Br/>जैसे जल–वियोग से मीन।।28।। <Br/><Br/>मीन॥28॥  "हांहाँ! चेतक¸ तू पलकें खोल¸ <Br/>कुछ तो उठकर मुझसे बोल। <Br/>मुझको तू न बना असहाय <Br/>मत बन मुझसे निठुर अबोल।।29।। <Br/><Br/>अबोल॥29॥  मिला बन्धु जो खोकर काल <Br/>तो तेरा चेतक¸ यह हाल! <Br/>हा चेतक¸ हा चेतक¸ हाय्"¸ <Br/>कहकर चिपक गया तत्काल।।30।। <Br/><Br/>तत्काल॥30॥  "अभी न तू तुझसे मुख मोड़¸ <Br/>न तू इस तरह नाता तोड़। <Br/>इस भव–सागर–बीच अपार <Br/>दुख सहने के लिए न छोड़।।31।। <Br/><Br/>छोड़॥31॥  बैरी को देना परिताप¸ <Br/>गज–मस्तक पर तेरी टाप। <Br/>फिर यह तेरी निद्रा देख <Br/>विष–सा चढ़ता है संताप।।32।। <Br/><Br/>संताप॥32॥  हाय¸ पतन में तेरा पात¸ <Br/>क्षत पर कठिन लवण–आघात। <Br/>हा¸ उठ जा¸ तू मेरे बन्धु¸ <Br/>पल–पल बढ़ती आती रात।।33।। <Br/><Br/>रात॥33॥  चला गया गज रामप्रसाद¸ <Br/>तू भी चला बना आजाद। <Br/>हा¸ मेरा अब राजस्थान <Br/>दिन पर दिन होगा बरबाद।।34।। <Br/><Br/>बरबाद॥34॥  किस पर देश करे अभिमान¸ <Br/>किस पर छाती हो उत्तान। <Br/>भाला मौन¸ मौन असि म्यान¸ <Br/>इस पर कुछ तो कर तू ध्यान।।35।। <Br/><Br/>ध्यान॥35॥  लेकर क्या होगा अब राज¸ <Br/>क्या मेरे जीवन का काज?" <Br/>पाठक¸ तू भी रो दे आज <Br/>रोता है भारत–सिरताज।।36।। <Br/><Br/>भारत–सिरताज॥36॥  तड़प–तड़प अपने नभ–गेह <Br/>आंसू आँसू बहा रहा था मेह। <Br/>देख महाराणा का हाल <Br/>बिजली व्याकुल¸ कम्पित देह।।37।। <Br/><Br/>देह॥37॥  घुल–घुल¸ पिघल–पिघलकर प्राण¸ <Br/>आंसू आँसू बन–बनकर पाषाण। <Br/>निझर्र–मिस बहता था हाय <Br/>हा¸ पर्वत भी था मि`यमाण।।38।। <Br/><Br/>यमाण॥38॥  क्षण भर ही तक था अज्ञान¸ <Br/>चमक उठा फिर उर में ज्ञान। <Br/>दिया शक्त ने अपना वाजि¸ <Br/>चढ़कर आगे बढ़ा महान््।।39।। <Br/><Br/>महान्॥39॥  जहां जहाँ गड़ा चेतक–कंकाल¸ <Br/>हुई जहां जहाँ की भूमि निहाल। <Br/>बहीं देव–मन्दिर के पास¸ <Br/>चबूतरा बन गया विशाल।।40।। <Br/><Br/>विशाल॥40॥  होता धन–यौवन का हास¸ <Br/>पर है यश का अमर–विहास। <Br/>राणा रहा न¸ वाजि–विलास¸ <Br/>पर उनसे उज्ज्वल इतिहास।।41।। <Br/><Br/>इतिहास॥41॥  बनकर राणा सदृश महान <Br/>सीखें हम होना कुबार्न। <Br/>चेतक सम लें वाजि खरीद¸ <Br/>जननी–पद पर हों बलिदान।।42।। <Br/><Br/>बलिदान॥42॥  आओ खोज निकाले यन्त्र <Br/>जिससे रहें न हम परतन्त्र। <Br/>फूंके फूँके कान–कान में मन्त्र¸ <Br/>बन जायें स्वाधीन–स्वतन्त्र।।43।। <Br/><Br/>स्वाधीन–स्वतन्त्र॥43॥  हल्दीघाटी–अवनी पर <Br/>सड़ती थीं बिखरी लाशें। <Br/>होती थी घृणा घृणा को¸ <Br/>बदबू करती थीं लाशें।।44।। <Br/>लाशें॥44॥ <Br/poem>
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