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Kavita Kosh से
सुनता-देखता हूँ
तुम्हारी स्मृतियों की
उन्मुक्त कहानी !
दिल में
मौन का पत्थर
इस लिए था
दिल बहुत भारी ।भारी।
आँखों में थीं
रात-रात भर
लाल आँखो से
श्वेत-खारा पानी ।पानी।
हर रात
उमड़-घुमड़ दिल
जम कर कभी
क्यों नहीं होती बारिश !
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