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Kavita Kosh से
कितनी घनी और गहरी रेखाओं का जाल बुना है
तुम्हारी हथेलियों में
छोटी -बड़ी महीन-महीन रेखाएँ
लगता है नन्हें बच्चे ने कोई
काग़ज़ गोद दिया हो