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सौन्दर्य - 3 / प्रेमघन

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|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=प्रेम पीयूष / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
}}
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<poem>
लखत लजात जलजात लोचननि जासु,
::होत दुति मंद मुख चंदहि निहारी है।
रति मैं रतीहू राती जाकी न विरंचि रची,
::सची मेनका मैं ऐसी सुन्दरी सुघारी है॥
नागरी सकल गुन आगरी सुजाकी छवि,
::लखि उरबसी उरबसी सोच भारी है।
बेगि बरसाय रस प्रेम प्रेमघन आय,
::तो पैं बनवारी वारी बरसाने वारी है॥
</poem>
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