भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नख सिख - 2 / प्रेमघन

839 bytes added, 17:08, 18 अगस्त 2016
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=प्रेम पीयूष / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
}}
{{KKCatBrajBhashaRachna}}
<poem>
मुख मंडल पै कल कुंतल को,
::कहि रेसम के सम दूसत हैं।
अलि चौर सिवार औ राहु वृथा,
::यमपास मिसाल मसूसत हैं।
कवि भूलैं सबै घन प्रेम सुनो,
::सुधा सम्पति को मिलि मूसत हैं।
जनु सारद पूनम के निसि मैं,
::जुरि ब्याल सबै ससि चूसत हैं॥
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits