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बसेरिया+ / मुकेश प्रत्‍यूष

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प्रतीक्षा की वर्षों
कि सुलगेंगे लोग
सीखकर गुलमुहर से - रक्ताभ हो जाओ
जब असह्य लगे गर्मी

कहीं कुछ नहीं हुआ

धुआंते धुआंते
अब खिल गई है आग

पता नहीं चलता
कहां रोपें पैर

(+झारखंड का एक गांव जहां धरती से आग निकलती है)

</poem>
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