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|रचनाकार=मुकेश प्रत्यूष
|संग्रह=
}}
[[Category:कविता]]
{{KKCatKavita}}<poem>
प्रतीक्षा की वर्षों
कि सुलगेंगे लोग
सीखकर गुलमुहर से - रक्ताभ हो जाओ
जब असह्य लगे गर्मी
कहीं कुछ नहीं हुआ
धुआंते धुआंते
अब खिल गई है आग
पता नहीं चलता
कहां रोपें पैर
(+झारखंड का एक गांव जहां धरती से आग निकलती है)
</poem>
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प्रतीक्षा की वर्षों
कि सुलगेंगे लोग
सीखकर गुलमुहर से - रक्ताभ हो जाओ
जब असह्य लगे गर्मी
कहीं कुछ नहीं हुआ
धुआंते धुआंते
अब खिल गई है आग
पता नहीं चलता
कहां रोपें पैर
(+झारखंड का एक गांव जहां धरती से आग निकलती है)
</poem>