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घूमत फिरत अकेले वेष बनाये अद् भुत॥१४२॥
तन अँगरेजी सूट बूट पग, ऐनक नैनन।
जेब घड़ी, कर छड़ी लिये जनु अस्त्रन सस्त्रन॥१४३॥
चहै लेय जो पकरि सीस धरि बोझ ढोवावै।
नहिं प्रतिकार ततत्छन कछु जो मान बचावै॥१४४॥
भई रहनि अरु सहनि सबै ही आज अनोखी।
ब्रह्माज्ञानी सबै बने साधू संतोखी॥१४५॥
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