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Kavita Kosh से
छितवन की छाँह में खड़े हो कर <br>
ममता से मैंने अपने वक्ष में <br>
उस छौने का ठण्ढा ठण्डा माथा दुबका कर<br>
अपने आँचल से उसके घने घुँघराले बाल पोंछ दिये <br>
तो मेरे उस सहज उद्गार पर <br>
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