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Kavita Kosh से
|रचनाकार=दीन
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जितना दीखै थिर नहीं, थिर है निरंजन नाम।
ठाठ बाट नर थिर नहीं, नाहीं थिर धन धाम॥
नाहीं थिर धन धाम, गाम घर हस्ती घोडा।
नजर जात थिर नाहिं, नाहिं थिर साथ संजोडा॥
कहै 'दीन दरवेश' कहां इतने पर इतना ।इतना।थिर निज मन सत् शब्द, नाहिं थिर दीखै जितना।जितना॥
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