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मंत्र 1-5 / ईशावास्य उपनिषद / मृदुल कीर्ति
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20:48, 7 जुलाई 2008
अज्ञान तम आवृत्त विविध बहु लोक योनि जन्म हैं, <br>
जो भोग विषयासक्त, वे बहु जन्म लेते, निम्न हैं।<br>
पुनरापि जनम मरण के
दुखः
दुख
से, दुखित वे अतिशय रहें,<br>जग, जन्म,
दुखः
दुख
, दारुण, व्यथा, व्याकुल, व्यथित होकर सहें॥ [३]<br><br>
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