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|सारणी=ईशावास्य उपनिषद / मृदुल कीर्ती
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पूषन्नेकर्षे यम् सूर्य प्राजापत्य व्यूह रश्मीन समूह।<br>
कल्याणतमं तत्ते पश्यामि यो सौ पुरुषः सो हमस्मि ॥१६॥<br>
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<span class="mantra_translation">
सौन्दर्य निधि माधुर्य दृष्टि, ध्यान से दर्शन करूं,<br>
जो है आप हूँ मैं भी वही, स्व आपके अर्पण करूँ॥ [१६]<br><br>
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:::वायुर्निलममृतमथेदम भस्मानतम शरीरम।<br>
:::ॐ क्रतो स्मर कृत स्मर क्रतो स्मर कृत स्मर ॥१७॥<br>
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:::तब यज्ञ मय आनंद घन, मुझको मेरे कृत कर्मों को,<br>
:::कर ध्यान देना परम गति, करना प्रभो स्व धर्मों को॥ [१७]<br><br>
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अग्ने नय सुपथा राये अस्मान विश्वानी देव वयुनानि विद्वान्।<br>
युयोध्यस्म ज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नम उक्तिं विधेम ॥१८॥<br>
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हूँ विनत प्रभु तक ले चलो, हो विज्ञ तुम मम कर्म से।<br>
अति विनय कृतार्थ करो हमें, पुनि पुनि नमन अग्ने महे,<br>
हो प्रयाण , पथ में पाप की, बाधा न कोई भी रहे॥ [१८] <br><br>
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