भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माँ / दिविक रमेश

594 bytes added, 08:17, 27 अप्रैल 2008
New page: माँ रोज़ सुबह, मुंह-अँधेरे दूध बिलौने से पहले माँ चक्की पीसती, और म...


माँ

रोज़ सुबह, मुंह-अँधेरे
दूध बिलौने से पहले
माँ
चक्की पीसती,
और मैं
घूमेड़े में
आराम से
सोता .

- तारीफ़ों में बँधीं
माँ
जिसे मैंने कभी
सोते
नहीं देखा .

आज
जवान होने पर
एक प्रश्न घुमड़ आया है -

पिसती
चक्की थी
या
माँ

माँ .
Anonymous user