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|रचनाकार=मुरली चंद्राकर
|संग्रह=
}}
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देखे देखे देवर बाबु! तोर भैया के चाल
लिखरी लिखरी गोठ में मोला घर ले देथे निकाल
बरे बिहाई मडवा गिजरेव, देवता धामी मानेव
दाई ददा के छैहा बिसरेव, गांठ जोर मैं आयेव
का बहिरासु घर लिस वोला, बहिरी बहिरी रहिथे
बारे बिहाई औ तेकर सेती, मोला अतका तपथे
का बात बर कहि देंव वो दिन, घर ले वोहा परागे
खपचलहा तोर भाई ओसने, कतको कहव नै लागे
जुवा चित्ती मद मौहा औ सकल कर्म में हावे
निच्चट बेहडूवा बनगे वोहा रात रतिहा नै आवे
काम कमई में नैये ठिकाना, कहे में तनतनाथे
परबुधिया ल का कहिबे, लौठी बेड़गा उठाथे
भैसा अस बर्राय वो तो चूरे पके में आथे
रिस रांड के गोठ बात म, उत्ता-धुर्रा ठठाथे
तोर भाई ला कहिते बाबू, जनम झन गंवावे
इही जनम में दौ लेवे मोला, फेर जनम नई पावे
सहत भर ले सहत हव बाबू, नई बिगड़े मोर चाला
रांका राज के मैं सतवंतिन, परे हवय मोर पाला
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देखे देखे देवर बाबु! तोर भैया के चाल
लिखरी लिखरी गोठ में मोला घर ले देथे निकाल
बरे बिहाई मडवा गिजरेव, देवता धामी मानेव
दाई ददा के छैहा बिसरेव, गांठ जोर मैं आयेव
का बहिरासु घर लिस वोला, बहिरी बहिरी रहिथे
बारे बिहाई औ तेकर सेती, मोला अतका तपथे
का बात बर कहि देंव वो दिन, घर ले वोहा परागे
खपचलहा तोर भाई ओसने, कतको कहव नै लागे
जुवा चित्ती मद मौहा औ सकल कर्म में हावे
निच्चट बेहडूवा बनगे वोहा रात रतिहा नै आवे
काम कमई में नैये ठिकाना, कहे में तनतनाथे
परबुधिया ल का कहिबे, लौठी बेड़गा उठाथे
भैसा अस बर्राय वो तो चूरे पके में आथे
रिस रांड के गोठ बात म, उत्ता-धुर्रा ठठाथे
तोर भाई ला कहिते बाबू, जनम झन गंवावे
इही जनम में दौ लेवे मोला, फेर जनम नई पावे
सहत भर ले सहत हव बाबू, नई बिगड़े मोर चाला
रांका राज के मैं सतवंतिन, परे हवय मोर पाला
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