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चांदनी रात के हमसफ़र खो गये चांदनी रात में<br>बात करते हुए रह गये, क्या हुआ बात ही बात में<br><br>
ज़िन्दगी भी तमाशाई है, हम रहे सोचते सिर्फ़ हम<br>देखती एक मेला रही, हाथ अपना दिये हाथ में<br><br>
जिनका दावा था वो भूल कर भी न लौटेंगे इस राह पर<br>याद आई हमारी लगा आज फिर उनको बरसात में<br><br>
जब सुबह के दिये बुझ गये, और दिन का सफ़र चुक गया<br>साँझ तन्हाईयाँ दे गई, उस लम्हे हमको सौगात में<br><br>
तालिबे इल्म जो कह गये वो न आया समझ में हमें<br>अपनी तालीम का सिलसिला है बंधा सिर्फ़ जज़्बात में<br><br>
आइने हैं शिकन दर शिकन, और टूटे मुजस्सम सभी<br>एक चेहरा सलामत मगर, आज तक अपने ख़्यालात में<br><br>
मेरे अशआर में है निहाँ जो उसे मैं भला क्या कहूँ<br>नींद में जग में भी वही, है वही ज्ञात अज्ञात में<br><br>
ये कलामे सुखन का हुनर पास आके रुका ही नहीं<br>एक पाला हुआ है भरम, कुछ हुनर है मेरे हाथ में<br><br>
ख़्वाहिशे-दाद तो है नहीं, दिल में हसरत मगर एक है<br>कर सकूँ मैं भी इरशाद कुछ, एक दिन आपके साथ में<br><br>