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|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’
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|संग्रह=थार-सप्तक-1 / ओम पुरोहित ‘कागद’; म्हारै पांती रा सुपना / राजू सारसर ‘राज’
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मुंडै छळकती ममताहाँचल झबळकतौ हेतआंख्यां रो उमावभरै साख,सुरगळै सुख रीवै मूंधा खिणअंवेरण नैंपड़ जावैजिनगाणीं कमफगत अैक ‘जछणै ‘क रैकालखण्ड ज्यूं।जापायत रीजलम-पीड़लख ‘रमधरी-मधरीमुळकती बांझड़स्यात् नीं जाणैजापै री पीड़ रैपच्छै रो सुख।
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