भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पीड़ रो सुख / राजू सारसर ‘राज’

643 bytes added, 21:40, 27 अक्टूबर 2016
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
मुंडै छळकती ममताहाँचल झबळकतौ हेतआंख्यां रो उमावभरै साख,सुरगळै सुख रीवै मूंधा खिणअंवेरण नैंपड़ जावैजिनगाणीं कमफगत अैक ‘जछणै ‘क रैकालखण्ड ज्यूं।जापायत रीजलम-पीड़लख ‘रमधरी-मधरीमुळकती बांझड़स्यात् नीं जाणैजापै री पीड़ रैपच्छै रो सुख।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
8,152
edits