भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरि ठाकुर |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} {{KKCatChhattisgarhiRac...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरि ठाकुर
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeet}}
{{KKCatChhattisgarhiRachna}}
<poem>
झन मारो गुलेल
झन मारो गुलेल
बाली उमर लरकईया
बिछिया बोले झुमका डोले
अंग अंग मुस्काए
हवा मा अचरा उड़-उड़ जाए
मोर जी घबराए
बाजत है बैरी पैजनियां
झन मारो गुलेल
झन मारो गुलेल
बाली उमर लरकईया
नार नवेली मैं अलबेली
रतनारे हैं नैन
हो मोरे मधु छलकत है बैन
गदराए है बैन
पीछे पड़े मोरे सईया
झन मारो गुलेल
झन मारो गुलेल
बाली उमर लरकईया
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=हरि ठाकुर
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeet}}
{{KKCatChhattisgarhiRachna}}
<poem>
झन मारो गुलेल
झन मारो गुलेल
बाली उमर लरकईया
बिछिया बोले झुमका डोले
अंग अंग मुस्काए
हवा मा अचरा उड़-उड़ जाए
मोर जी घबराए
बाजत है बैरी पैजनियां
झन मारो गुलेल
झन मारो गुलेल
बाली उमर लरकईया
नार नवेली मैं अलबेली
रतनारे हैं नैन
हो मोरे मधु छलकत है बैन
गदराए है बैन
पीछे पड़े मोरे सईया
झन मारो गुलेल
झन मारो गुलेल
बाली उमर लरकईया
</poem>