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Kavita Kosh से
सिर्फ तुम भूखंड की सीमा नहीं हो देश ।।
पर्वतों की श्रंखला हो ,
सुनहरी पूरव पूरब दिशा हो ,
इंद्रधनुषी स्वप्न की
सुखदायिनी मधुमय निशा हो ,