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Kavita Kosh से
अलौकिक कार्यशाला
बिना गुरु की पाठशाला
एक अंकंुर अंकुर जो
बहुत कोमल
हवा से भी
मुलायम था
बढ़ना जहाँ सीखा
उठना - खड़ा होना
सँभलना भी