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कड़कड़ महिनत कर के पाथंव, पपिया पेट मं नाय अनाजअगर तोर अस लहू चुसइया, तब कहुं भोग सकत सुख राज!”सोनू किहिस – “कर्म ला भोगत, सदा रखत हस क्षुद्र विचारतब तंय पूंजी जोड़ पास नइ, रहत अभाव पात दुख खूब।”सुद्धू किहिस -”अगर मंय घालुक, लूट मचातेंव सब अतरापतोर असन मंय झिंकतेंव धरती, ब्याज मं रुपिया लेतेंव खूब।तभे तोर अतका मंय पुंजलग, मोर पास मं वैभव पूर्णजिनिस उड़ातेंव आनी बानी, पर ला टुहू देखातेंव खूब।”सोनसाय ला बानी चढ़गे, ओहर बोलिस कर के क्रोध-“छोटे नदिया खल बहुराई, तइसे करत टेचरहा गोठ।काकर संग कइसे गोठियाना, हमर पांव ला पर के सीखयदि उजड्ड आदत ला रखबे, गिर के रहिबे मुड़ के भार।तोर अन्जरी बात बाण घुस, अंतस ह्मदय मं कर दिस घावउही बखत ए ऐब मिटाही, हेर लुहूं जब एकर दांव।”सुद्धू कथय – “खूब जानत हंव, तंय ले सकत हवस प्रतिशोधअउ तंय निश्चय बल्दा लेबे, जब तंय पाबे ओकर टेम।मगर मोर सच गोठ घलो सुन, मृत्यु के ताकत ला पहिचानकरत प्रदर्शन विद्धता के अउ, धन के करबे खूब घमंड।पर सब चाल हो जाहय असफल, जहां मृत्यु ले जाहय झींककरत घमंड देखावत ताकत, जमों शक्ति के चरपट नाश।याने मंय कहना चाहत हंव-जलगस तन मं तलफत प्राणहल्का बात मुंह ले झन हेरो, झन छीनव पर के अधिकार।हवय गरीबा हिनहर लड़का, ओकर साथ घृणा झन होयओकर पर तंय स्नेह प्यार कर, सब झन पर रख निश्छल भाव।”सोनू मण्डल रकमका बढ़गे, बंगी पढ़त लेत मरजादसुद्धू कान धरत नइ एको, काबर व्यर्थ बुद्धि बर्बाद!आत गरीबा के सुरता अब, भूल पात नइ ओकर यादसुद्धू लहुटत हवय अपन घर, शेष काम के अंतिम बाद।दरवाजच तिर मिलिस गरीबा, जेहर चिखला देह लगायसदबदाय माटिच माटी मं, मात्र आंख भर हा बच पाय।सुद्धू किहिस -”अरे तुलमुलहा, काबर चिखला ला चुपरेस –अगर तोर तबियत हा बिगड़त, कुछ उवाट कतका अस क्लेश?”पिता-डांट सुन कथय गरीबा, थोरिक गुन ठुड्डी धर हाथ-“लेलगा, मंय तिथला नइ बोथे, मंय लदाय थाबुन ममहात।अबल तमइया थते ददा ते, थेवा तरे पलन हे आदबाथी ततनी थवा पेत भल, नींद थुताहंव लोली दात।”तोतरावत चटरु हा खींचिस, एकदम जोर बाप के कानसुद्धू हंस के पुत्र ला लानिस, चढ़ा खांध पर भितर मकान।ऊपर मटकत कथय गरीबा -”मंय थब धन ले हंव बलवानदर हत्थी आ दही इही तिल, मुटका माल के लेहूं प्लान।पहलवान के दाप दलीबा, तेला दानत हल एत दांवमोल बात ला लबला थमझत, बता थकत मंय तौथल दांव।”तोतरी बात ला सुनथय सुद्धू, लगत सुहावन ह्मदय उमंगकरु होत हे साग करेला, मगर खाय मं हे स्वादिष्ट।“तोर लबारी बात सुने बर, मात्र एक सुद्धू हा पासकूंद कूंद गोठियात सुवाअस, खांद ले उतरो चल बदमाश।”अतका कहि सुद्धू चटरु के, रगड़ के धोइस तन के मैलबाद पेज धर कोठा घुसरिस, जिंहा बंधाय कृषक धन बैल।मन प्रसन्न मदमस्त गरीबा किंजरत एती ओती।तभे अचानक आंखी जमगे चांटी के बिल कोती।चांटी मन के रेम लगे हे, बिल अंदर ले बाहिर आतउही पास जा टुडुंग गरीबा, थपड़ी झड़ बड़ मजा उड़ात।कतको बुबू ला धर तुलमुलहा, मारिस जहां चपक पुटपूटचांटी-झुण्ड घलो जुरिया के, लइका ला चाबिस चुट चूट।अब कलबला गरीबा रोवत, चिल्ला चिल्ला पटकत गोड़आखिर डर के पल्ला भागत, चांटी अरि के ठंव ला छोड़।झप आ सुद्धू देत ठोलना -”काबर भगत छोड़ मैदानतंय हस सब झन ले बलशाली, दिखा अपन अब ताकत शान!अरे उदबिरिस, करत टिमाली, कष्ट मिलय तस धरथस काममानस नइ सियान के बरजइ, अपन हाथ लावत तकलीफ”सुनत गरीबा मुंहबोक्का बन, समझ गे तइसे मुड़ी हलातसद्धू हा कोरा पर बइठा, गिनत गरीबा के दूध-दांत।पिता के मन ला हरियर राखत, लइका खेल कूद कर नाचफुरनावत गरीबा हा जइसे, गिनती एक दो तीन चार पांच।पढ़े लइक जब होय गरीबा, विद्या मन्दिर लेगत बापएकर नाम उहां लिखवाथय, शिक्षक मिलतू ला कहि बोल।मिलतू हा सुद्धू ला बोलिस -”तंय नइ करेस पढ़ाई।मगर गरीबा ला शिक्षित कर ओकर होय भलाई।मगर गरीबा उहां रुकत नइ, बस्ता धर-धर उड़े विचारमगर पढ़े बर परिस बिलमना, मिलतू के सुन डांट दुलार।
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