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<poem>
एकर बाद मं अलग हो जाही – घर धरती गरुगाय मकान
एक दुसर ला देख थूंकिहव, पर अभि खावव बांट बिराज।
मंय दसरुके घर जावत हंव, ओकर पास करत गप – गोठ
जेवन हा चुर जाहय तंहने, सब झन खाबो बइठ अराम।”
भांवत ला चुप दीस इशारा – ताकि करय अलगेच मं भेंट
समझ के भांवत मुड़ी हलावत, सोचिस – आय लाभ के नेत।
कुछ दुरिहा मं बिलम गरीबा, देखत के भांवत कब आय?
कुछ बेरा चल पहुंचिस भांवत, अपन साथ दूसर नइ लाय।
चुप चुप का गोठियात गरीबा, भांवत ओरखत कान टंड़ेर
आखिर जब मुरथम ला जानिस, आंख खोल के दीस पंड़ेर।
कहिथय – “मोर लइक तंय बोलत, एमां कहां मोर नुकसान!
पर तंय जेन राह फुरियावत, चले जहय सांवत के जीव।”
कथय गरीबा – “संसो झन पर आन देंव नइ बद्दी।
हम तोला उबार के रहिबो, पाबे सुख के गद्दी।
हर्ष मनात रेंग दिस भांवत, तब सांवत आइस चुपचाप
इनकर बात चिरई नइ जानिस, तइसे रचिन दुनों झन पाप।
फुरसुद बाद गरीबा पहुँचिस, दसरुला सब कथा बताय
दसरुसुनिस तंहा घबरागे – मुड़ पर आवत आफत धांय।
कहिथय – “तंय उपाय सोचे हस, ओहर खतरनाक भरपूर
एमां मंय सामिल नइ होवंव, मोला आफत ले रख दूर।”
कथय गरीबा -”तंय झन घबरा, मंय हा घोख लेंव हर ओर
काम के सफ्फलता होवत तक, रहिहंव बहुत टंच हुसियार।
मोर बात पर कर यकीन तंय, ककरो पर आफत नइ आय
हमर नियाव सफलता पाहय, भाई मन हा खुशी अराम।”
दीस गरीबा नेक भरोसिल, तंह दसरुहो गिस तैयार
जहां खाय बर अैभस बलौवा, एमन हा नइ बाधिन बार।
भोजन बर जब एमन बइठिन, सांवत मिठई लान लिस हेर
ओला भांवत के तिर रख दिस, ताकि उड़ाय टपाटप हेर।
भांवत घलो अपन कुरिया गिस, उंहचे ले लानिस नमकीन
ओला सांवत के तिर परसिस, ताकि गफेलय झप झप बीन।
सांवत – भांवत मन सग भाई, देखव कतका मया देखात-
लेकिन एमां भेद छुपे हे, धैर्य रखव तंहने खुल जात।
अब तब खाय शुरुकर देतिन, तभे गरीबा हेरिस बोल –
“काबर लकर लकर लेवत हव, भागत हे का तुम्हर ओल?
हम्मन जेवन खत्तम लेबो, लेकिन रखव भला कुछ धैर्य
अन्य जीव हा पहिली खाहय, तब मिल जथय पुण्य के लाभ।
अगर इहां हे कुकुर बिलाई, लान बलाके मार अवाज
ओमन ला खावन दव पहिली, तब फिर खाव मनुष्य समाज।
अगर मूक प्राणी ला देहव, भोजन खाय मनुज के पूर्व
तुमला पुण्य लाभ मिल जाहय, भूल के झन छोड़व शुभ नेग।”
भांवत बिलई के आगू रख दिस, मीठ मिठई ला ओकर खाय
सांवत हा नमकीन राख दिस, एक कुकुर के सक भर खाय।
बिलई खैस तंह कहां सुरक्षित, ओकर छुटगे हांसत प्राण
उसने कुकुर घलो टप खाइस, तब चूरी अस तज दिस जान।
एकदम चिल्ला डरिस गरीबा -”एको झन झन छुवव अनाज
सांवत अउ भांवत दूनों मन, जेवन मं विष डारिन आज।
लाय हवंय नमकीन मिठाई, तेमां जहर हवय सच बात
दुनों बन्धु मन पाप रचिन हे जब प्रत्यक्ष त व्यर्थ प्रमाण।
एमन एक लहू सग आवंय, मगर मुरूख मन चलत कुचाल
एक दुसर के प्राण हरे बर, काल बलावत करके मान।”
सुनिन गरीबा के अवाज तंह, वासी मन भर भर ले अैजन
बांके मानकुंवर अउ चिंता, एमन घलो रूकन नइ पैन।
ओमन जब नाटक ला जानिन, थुवा थुवा कर हंसी उड़ैन
पापी मन के करत खलिन्द्री, ताकि कटाय दुनों के नाक।
कथय गरीबा – “आज करे हंव, पाठ पढ़ाय बर नाटक एक
नाटक मं कुछ दम नइ लेकिन – मूरख फंस गिन बिगर विवेक।”
किहिस गरीबा ग्रामीण मन ला – “जानत महाभारत के बात
कौरव – पाण्डव पासा खेलिन, उही खेल हा कर दिस घात।
पासा के घटना ला यदि सब, हंसी उड़ा के देतिन पेल
युद्ध भयंकर तेहर रूक तिस, द्धेष के बदला होतिस मेल।
तइसे इंकर बात झन मानो, वरना मिलिहय दुष्परिणाम
तुम सब मन मं फूट हो जहय, प्रेम बीच लग जहय विराम।”
मानकुंवर खखुवा के बोलिस – “सच मं इनकर नीति खराब
इंकर चाल हा घृणा के लाइक, एमन फूट करा दिन गांव।
अैकस गरीबा ठीक समय पर, हमला कर दिस तुरूत सचेत
अब ले इंकर बात नइ मानन, दूर ले देख के परबो पांव।”
किहिस गरीबा दुनों बन्धु ला – “वास्तव मं तुम बहुत अलाल
तभे खेत मन परिया पलटत, घर के हालत हा दयनीय।
एमां पर के कुछुच दोष नइ, तुम कमचोर के आव प्रमाण
स्वयं गरीबी ला बलात हव, अपन हाथ मं मंगत अभाव।
बली हवव पर श्रम ले भगथव, पर के ऊपर मढ़थव दोष
अब ले अपन काम ला देखव, तुम्हर लहू ले उझलत जोश।
जब तुम भिड़ के महिनत करिहव, खेत उबजहिय बहुत अनाज
तुम सम्पन्न सुखी हो जाहव, दूसर तक करिहंय तारीफ।”
मुंआ धरे सांवत भांवत ला, ओमन करे हवंय अपराध
उनकर नसना टूट गिस रट, मुंह हा लटकिस खाल्हे कोत।
मगर गरीबा प्राण बचा दिस, ऊपर ले समझउती दीस
उंकर कपट हा छरिया गिस खब, बैर भाव तक छिन के छान।
एक – दुसर ला बंहा पोटारिन, सांवत किहिस बढ़ा के प्रेम –
“हम हा हवन बिरिजबंधन मं, कहत पेट के कपट निकाल।
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