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<poem>
पूंजीपति के तिर धन रुपिया, ओहर बिसा सकत हर चीज
तुम्हर बीच के मित्र बिसा के, बना सकत हे शत्रु तुम्हार।
शासन तिर कानून नियम हे, अधिकारी जनशक्ति अपार
पत्र विचार प्रचार के माध्यम, याने शासन सक्षम खूब।
शासन पूंजीपति के संग यदि, करिहव खुले आम संघर्ष
उनकर पद उद्योग सुरक्षित, तुम्हर हो जाहय खुंटीउजार।
होगिस पश्त श्रमिक आंदोलन, श्रमिक युवक झेलिन नुकसान
हमूं उही तोलगी ला पकड़त, सब उद्देश्य हा चरपट नाश।
अपन स्वार्थ के पूर्ति करत तुम, खूब बढ़ाव शक्ति सामथ्र्य
शासन मं घुसपैठ करव अउ, पूंजीक्षेत्र तुम्हर विश्वस्त।
जब तुम शक्तिवान हो जाहव, करव शत्रु पर विकट प्रहार
तुम्हर भविष्य हा पूर्ण सुरक्षित, सबके आवश्यकता पूर्ण।”
बुल्खू हा जे शब्द निकालिस, तेला युवक सुनिन कर चेत
कतको नीति ला अस्वीकारत, पर आखिर मं इज्जत दीन।
होवत जउन संतुलित जेवन, मांस शाक मीठा नमकीन
पात शरीर जमों कैलोरी, तब पावत दीर्घायु निरोग।
ओतकी मं छेरकू हा आथय, तंह बुल्खू हा हाथ मिलैस
यदपि कुथा हे राह काम दल, पर संबंध ला राखत मीठ।
बुल्खू हा छेरकू ला बोलिस -”शिक्षित युवक करत हें मांग
इंकर मांग पर ध्यान देव तुम, आय समस्या ला सुलझाव।
युवक किसान श्रमिक मन होथंय, अपन राष्ट्र के मुख्य स्तम्भ
अगर इंकर आवाज ला दाबत, देश उठाथय कई नुकसान।
दंगा हिंसा धार्मिक झगड़ा, आंदोलन आतंक षड़यंत्र
अनाचार विद्रोह गद्दारी, देश बंटत हे कइ ठन भाग।
शासन मं तंय हा बइठे हस, युवक के मांग ला सुन कर चेत
अपन शक्ति भर मदद ला पहुंचा, इंकर जीविका बर कर काम।”
बुल्खू के नक्सा मारे बर, खुद ला सिद्ध करत हे श्रेष्ठ
छेरकू जमों तर्क ला काटत, मात्र चलावत अपन विचार-
“तंय हा सिर्फ बात मं बोलत, पर हम करत ठोसलग काम
युवक के भलाई होवय कहि, पारित हवय योजना चार”।
छेरकू किहिस नवयुवक मन ला – “वास्तव मं तुम होवत नष्ट
लेकिन तुम्मन फिकर करव झन, मंय खुद भिड़ के हरहूं कष्ट।
आत दुर्ग मं मुख्यमंत्री हा, मंय जावत हंव ओकर पास
तुम्मन घलो मोर संग रेंगव, ए तिर करव समय झन ख्वार।
आय जाय बर फिकर करव झन, ट्रक बस के हम करे प्रबंध
जेवन अउ कुछ रुपिया मिलिहय, एला झन समझव फरफंद”।
छेरकू हा बरगला डरिस तंह, फेंकिन युवक मांग के डांग
छेरकू साथ भरभरा चल दिन, अपन हाथ मं मेटिन मांग।
बुल्खू पिनकू खड़े उहिच कर, बुल्खू हा बोलिस कुछ हांस –
“छेरकू के करनी ला देखव – फट ले करिस मांग ला नाश।
हम तुम बक खा इंहे खड़े हन, छेरकू संग चल दीन जवान
गंजमिज भीड़ दुर्ग मं बढ़िहय, तंह छेरकू पाहय सम्मान।
मगर युवक मन ला का मिलिहय, हो दिग्भ्रमित रेंग दिन राह
वाजिब बात के पत ला मेटत, सुघर लगत हे गलत सलाह।
पर आखिर मं करत निरीक्षण – हमर युवक मन हा निर्दाेष
अपन भविष्य कतिक ला देखंय, जब पावत तात्कालिक लाभ।
बुल्खू हा ओ तिर ला छोड़िस पिनकू टहलत फांका।
मींधू ला कहुं जात देख के ओहर मारिस हांका।
पिनकू पूछिस -”नइ जानस का – चल दिन दुर्ग बहुत इंसान
तंय हा काबर उहां गेस नइ, इहिच शहर मं देवत जीव।
अगर तंहू हा उंहचे जाते, वाहन तक के मुफ्त प्रबंध
आनी बानी जेवन मिलतिस, ऊपर ले नगदौवा नोट?”
मींधू हा हड़बड़ागे पहिली, गला मं रुकगे सतम जुवाप
ओहर धरे काम कुछ दूसर, उही बात ला सोचत आप।
बहुत बाद मं सोच के बोलिस -”यद्यपि मंय हा पढ़े जवान
पर, पर ले चाला हे उत्तम, रुपिया बर देवंव नइ जान।
अन्य नवयुवक मन लालच मं, बेच सकत हें भारत देश
लेकिन मंय हा रक्षा करिहंव, जलगस तन मं जीवन शेष।”
पिनकू कहिथय -”मान सकत हंव, तंय हा बात करत हस ठोंक
लेकिन सम्हर ओढ़ दूल्हा अस, कहां जात हस बनके टंच!
उंचहा घड़ी हाथ मं चमकत, सोन के मुंदरी नरी मं चैन
कोट अउर फूलपेंट हने हस, मटकावत चंवतरफा नैन।
याने अड़बड़ खर्च करे हस, पाय कहां के अतका नोट
मोर पास सच उत्तर ला रख, यदि नइ परत हृदय पर चोट?”
पिनकू खूब चेंध के पूछत, पर मींधू उत्तर नइ देत
सोचत-काम बिगाडुक हा अब, भेद बताय मांस ला खात।
मींधू बात घुमाय ला बोलिस -”सपसप करत मोर अब पेट
चल पहिली कुछ जिनिस उड़ावन, तंहने ढिलिहंव उत्तर हेट।”
पिनकू ला बरपेली झींकिस, कचरा होटल मं बइठैस
कई प्रकार के जिनिस खाय बर, कर आदेश तुरुत मंगवैस।
खाद्य पदार्थ हा जहां आगे, पिनकू टप टप झड़कत माल
मींधू अउ दूसर मन हांसत, देख के ओकर कंगलइ हाल।
बालम कथय -”आज देखत हन – यह तो बिकट हदरहा जीव
जिनिस भगावत तइसे ओइरत, एकोकनिक धरत नइ धीर।”
मींधू अउ दूसर मन छोड़िन, अपन प्लेट मं बहुत समान
पर पिनकू हा जमों गपक दिस, अन्न के झनिच होय हिनमान।
फत्ते हा मींधू ला पूछिस – “कहां के पेट मंहदुर ला लाय
मोला तो असभ्य अस लगथय, जीवन उच्च जिये नइ आय?”
पिनकू छरिस -”जिनिस यदि छोड़त, जनता संग मं धोखा घात
हमर देश के कतको मनसे, पेटभरहा भोजन नइ पात।
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