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ठेपू कथय -”बिकट मनसे हसफसल होय झन होय तभो ले, तंय हस मित्र निघरघट जीवगोल्लर अस अंड़िया निष्फलता के रेंगतअर्थ लगात।दीन हीन लघु पद देहाती, सब ला रखत कांरव मं दाब।”एमन करत ठोसलग कामबेदुल के अब कान पिरावतमगर इंकर तारीफ होय नइ, खेदू के सुन क्रूर घमंडनिंदा तक बर आवत लाज।”बेदुल मेहरुबोलिस – “ठीक कहत हस, अब सवाल के नकडेंवा चढ़गेउत्तर लान –रिहिस रायपुर मं कई बूता, ओहर सवा सेव बन गीस।तब तंय उहां कोन दिन गेस!खेदू ला भन्ना टी। वी। अउ अकाशवाणी मं, तोर जाय के पूछिस -”तंय अस कोन करत का कामरिहिस विचारमंय हा चहत उहां तोर सच परिचयका बूता निपटिस, ताकि तोर जस हर ठंव गांवहोगिस का पूरा उद्देश्य?”खेदू कहिथय बहल किहिस “पिया चुके हंव“मंय गांव मं रहिथंव, तंहू करत हस गांव निवासमोर शक्ति व्यथा ला सब के कानपर अब गर्व साथ खोलत हंवतंय हा सुनबे, मोर सिंहासन कतका ऊंच!अतका असन रखत विश्वास-मंय करथंव अपराध बेहिचकहंसिया श्रमिक कमावत खेती, मोला जम्हड़ लेत कानूनपर भरपेट अन्न नइ पायपुलिस अदालत प्रकरण चलथयहम्मन गंवई मं बसथन तब तो, खेदू पाय कड़ाकड़ दण्ड।साहित्य मं बुझावत नाम।पर लकर धकर मंय साक्षी ला फोरत हंवगेंव रायपुर, या धमकी झड़ खेदत दूररचना धर साहित्यिक कामजब आरोप सिद्ध लेकिन उहां पूछ नइ होवयहोइस, मंय निर्दाेष प्रमाणित होत।”खेदू टेस बतावत पर बेदुल कांपत जस पाना।आखिर जब सइहारन मुस्कुल क्रोध फुटिस बन लावा।अउ उपरहा कटागे नाक।भड़किस – “रोक प्रशंसा ला अबमंय अकाशवाणी तिर ठाढ़े, अति के अंत होय के टेमअंदर जाय रुकत हे पांवपांप केन्द्र के मरकी भरत लबालबरुतबा अड़बड़ होथय, तभे हमर सुकुड़दुम मन डर्रात।मोला लड्डू भृत्य हा मिलगे, उही हा देइस नेक सलाह –“तंय अधिकारी तिर जा निश्चय, बात बोल मंदरस अस लेवत जन्म।”मीठ।खेदू के टोंटा ला पकड़िसकहिबे -”निहू पदी दिन काटत, अपन डहर झींकिस हेचकारटीमटाम ले रहिथंव दूरभिड़ के शुरुकरिस दोंगरे इहां लड़े बरनइ आए हंव, सरलग चलत मार सिरिफ सधाहंव खुद के वार।काम।”कृषक हा बइला ला गुचकेलतकार्यालय मं पहुंच गेंव मंय, डुठरी मन ला कोटेला दमकातकरके पक्का।बेदुल देख कार्यक्रम अधिधाशी हा खेदू ला झोरत, यद्यपि अपन हंफर लरघात।मारिस बात के धक्का।खेदू ला भुइया मं पटकिस, ओकर वक्ष राख दिस पांवखेदू ला बरनिया “जनम के कोंदा अस तंय लगथस, तब बक खाके देखतमात्रका विचार पहुंचे हस काबर, खुद के परिचय साफ बतात –कुछ तो बोल भला इंसान?”“मरखण्डा ला मंय पहटाथंवऊपर ले खाल्हे तक घुरिया, हत्यारा साहब ढिलिस व्यंग्य के लेथंव प्राणबाणशोषक के लेकिन मंय शोषण करथंव, मंय खुश होवत ओला लूट।हा सिकुड़ खड़े बस – सांवा बीच मं कंपसत धान।न्यायालय समाज पंचायतमंय बोलेव – “रहत हंव मंय हा, शासन साथ पुलिस कानूनअटल गंवई हे गोदरी गांवएमन अपराधी कृषक श्रमिक अउ गांव संबंधित, तुम्हर पास रचना ला छोड़तलाय।पहिली भेजे हंव रचना कइ, यने दण्ड देवन मगर मुड़ा नइ पांय।गीस जवाबतब मंय हा जघन्य मुजरिम लाहार इहां आए हंव, अपन हाथ मोर प्रार्थना सुन लव आप –आकाशवाणी ले देवत दण्डचाहत हंव, अपन नाम सब तन बगरायओकर नसना रटरट टूटतबिन प्रचार उदगरना मुस्कुल, करिहव कृपा मथत मंय मन भर पावत संतोष।”आय।”मनसे भीड़ कड़कड़ा देखत, मगर करत साहब हा बरनिया के बोलिस -”कान टेंड़ सुन सही सलाहलेखक लइक तोर नइ बीच बचावथोथना, दरपन देख लगा ले थाह।चलत दृष्य के करत समीक्षासांगर मोंगर अड़िल युवक हस, चम्पी तक हा झोंकिस राग –गांव लहुट के नांगर जोंत“खेदू हे समाज काम असादी के दुश्मनबदला मं, पथरा हृदय बहुत हे क्रूरश्रम करके झड़ गांकर रोंठ।”ओकर दउहा मिटना चहियेहंसिस कार्यक्रम अधिधाशी हा, पर मंय मानेव कहां खराब!गोड़ तरी मोंगरा खुतलाथय, तब समाप्त जग अत्याचार।ले ओहर देत सुगंध।बेदुल असन बनंय सब मनसेमंय बोलेंव – “नम्र बोलत हंव, जेन करत एक तौल नियावपर तुम उल्टा मारत लातअपराधी ला दण्डित करथयमंहू आदमी आंव तुम्हर अस, दीन हीन ला प्रेम सहाय।”पाप करे नइ रहि देहात।तब मेहरुहा बहल ला बोलिस – “फोर पात बिगर पलोंदी बेल बढ़य नइ अपन विचारपक्ष विपक्ष कते तन दउड़ंव, दूनों बीच कलेचुप ठाड़।ना बिन खम्हिया उपर मचानअनियायी के भरभस टूटयधर आसरा इहां आए हंव, अत्याचार पर खिसिया के बिन्द्राबिनासबेधत बान।पर समाप्त बर कते तरीकाकवि उमेंदसिंग बसय करेला, भूमि लुकाय कंद अस ज्वाप।जेन लड़िस गोरा मन साथअपराधी शोषक परपीड़क, पापी जनअरि मनखेमारइनकर नसना ला टोरे बर, दण्ड दीन – जन जागृति मं जीवन हर लीन।तउन क्रांतिकारी ईश्वर बनअर्पित, सब झन पास प्रतिष्ठा पैनओकर नाम कहां हे आज?उनकर होत अर्चना पूजाजयशंकर प्रेमचंद निराला, कवि मन लिखिन आरती गीत।इंकर अमर अंतिम तक नामपर एकर फल करुनिकलगेउमेंद ला कोन हा जानत, गलत राह पकड़िन इंसानओकर रचना गिस यम धाम।हिंसा युद्ध बढ़िस दिन दूनाछिदिर बिदिर होगे सब रचना, शासन करिस अशांति तबाह।एकोझन नइ रखिन सम्हालजइसन करनी वइसन भरनीओकर पुस्तक छप नइ पाइस, पालत अगर इहिच सिद्धान्ततब का जानंय बाल गोपाल!”बम के बदला बम हा गिरिहयमोर कथा ला साहब सुन लिस, राख बदल जाहय संसार।”भड़क गीस आंखी कर लाल –आगी हा जब बरत धकाधक“तोर असन कतरो लेखक ला, रोटी सेंके बर मन होतबहल मंय हा रखत दाब के मन होवत बोले बर, हेरत बचन धान अस ठोस-कांख।“आग ला’ अग्नि शमन दलहगरुपदरुलेखक बनथव, रोकत, रुकत तबाही होवत शांतकोन कमाहय बरसा धामतइसे नवा राह हम ढूंढनगांव लहुट के काम बजा तंय, तब संभव जग लेख जाय यमराज के कल्याण।”धाम।झंझट चलत तउन अंतिम तंह, दुनों विश्वविद्यालय गीनछोड़ लफरही निकल इहां ले भड़कत मोर मइन्ता।उहां रिहिस ढेला कवियित्रीवरना बुढ़ना ला झर्राहंव, तेकर साथ भेंट हो गीस।करिहंव तोर हइन्ता।ढेला उंहचे करत नौकरीसाहब ला गिनगिन के पत लिस, पाय प्रवक्ता पद जे उच्चपर मंय बायबिरिंग ना क्लान्तओकर रुतबा सब ले बाहिर, लेकिन रखत कपट मं दाब।ढेला बिच्छी हा मेहरुला बोलिस -”मोर नाम चर्चित सब ओरदैनिक पत्र हा स्वीकृति देथयचटपट झड़काथय, कई ठक पुस्तक छपगे मोर।मर्थे व्यक्ति रहि जाथय शांत।दिखत दूरदर्शन मं मंय हा, मिंहिच पाठ्य पुस्तक मं छायउहां ले हट के आएंव – गेंव उबली के पान दुकानदेत समीक्षक मन हा इज्जतजहां बात के परिस अभेड़ा, साहित्य मं प्रकाशित नाम।”उबली लग गिस सत्य बतान।गांव के लेखक आय बहल हाओहर किहिस – “आय हस हंफरत, चुपे सुनत ढेला के डींगलेकिन व्यर्थ जात सब खर्च।जतका ऊंच डींग हा जावतसाहब मन टेंड़ुंवा गोठियाथंय, उसने बहल आंजत आँख व्यंग्य के फइलत आंख।मिर्च।जब ढेला हा उहां ले हटगिसराजबजन्त्री राई दोहाई, बहल अैेस मेहरुके पासअस तस पर देवंय नइ ध्यानपूछिस -”ढेला जे उच्चारिसइंकर साथ परिचय अउ बइठक, ओमां कतका प्रतिशत ठीक?”बस ओमन पाथंय अस्थान।मेहरुकथय -”किहिस ढेला हाहम्मन इही पास मं रहिथन, तेन बात हा बिल्कुल ठोसजानत साहब मन के पोलशिक्षा उच्च पाय मिहनत करओमन चाय पान बर आथंय, संस्था उच्च पाय पद उच्च।आपुस मं गोठियाथंय खोल।”पर अचरज के तथ्य मंय राखतओतकी मं बोलिस ट्रांजिस्टर, जीवन पद्धति राखत खोल सुघर ददरिया झड़के बाद संस्था परिसर रहत रात दिनदानी के कहना ला सुन लव, पुस्तक संग संबंध प्रगाढ़।जे मनसे के जतका साद।अपन ला प्रतिष्ठित समझत हेंकृषक बसुन्दरा मांईलोगन, जन सामान्य ले रहिथंय दूरबंद करव तुम चिर्री गाजउंकर पास नइ खुद रचना के अनुभव, पर नामे ला सुन लव – गांव गंवई के पांव चलत हें राह।रीति रिवाज।कथा उबली जे ठौंका ला पढ़ के लिखत कहानीबोलिस, पर ओकर मंय पा लेंव प्रमाणदानी के दृष्य विचार चुरातसमय रचना हा परिवर्तित हो जावतस्वीकृत, तेकर ले ओहर अनजान।मंय हा क्रूर शब्द भर पाय।”भूतकाल के कथा जउन हे, ओला वर्तमान लिख देतएकर बाद बहल अउ बोलिस – “दानी करथय नगर निवासअपन समय ला पहिचानय नइजमों क्षेत्र मं पात सफलता, कहां ले लिखहीं सत्य यथार्थ!”चढ़े हवय साहित्यकाश।मेहरुबात चलावत जावतलेकिन हम तुम गांव मं रहिथन, तभे बहल ला मारिस रोक –ते कारन हम जावत गर्त“जेन काम दूसर हमर लेख मन करथंयबिगर पुछन्ता, उहिच काम तंय तक धर लेस।हारत हन साहित्यिक शर्त।”उच्च विशिष्ट जउन मनसे हेमेहरुकथय – ठीक बोलत हस, उंकर होत आलोचना खूबशहर साधन सम्पन्नउंकरेच बाद प्रशंसा होवतटी। वी। रेडियो पत्र प्रकाशन, आखिर संघ समीक्षक नाम इनाम।उहां के लेखक चर्चित होथय, जुड़त पाठ्य पुस्तक मं नामलेखक श्रेष्ठ कहात उही मन, होत प्रशंसित उंकरेच नाम।सिंचित भूमि मं किसान मन हालेकिन एकर ए मतलब नइ, डारत बीज लान के कर्जहम्मन छोड़ देन फट गांवउहिच भूमि मं कर्म करत किसानीहम मांग ला राखन, नफा होय या उहू कर्म हो नुकसान।प्रतिभावान।भूमि कन्हार जमीन असिंचितन्यायालय मं जइसन होथय, एला देख भगात किसानघुरुवा मन पर आइस कष्टउंकर कथा ला काव्य बनावत, होय असच के टायर भस्ट।
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