भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
उल्टा पुल्टा रेंगय मं सब काम बिगड़ जाथे ठउका
अलग -अलग पतवार च ले चले मन धार बीच मं उलटथे नउकातुम ज्ञानी हो पर काबर बइठे हो चुप्पे चाप ।चाप।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits