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हरेली / नूतन प्रसाद शर्मा

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<poem>
आओ आओ गा किसान आओ गा बनिहार।
जुरमिल के मनाबो संगी हरेली तिहार।

कूद-कूद के मानेन अब तक होरी देवारी
एको कनिक करिस नइ हिनहर के चि न्हारी
चेतो अब छोड़ो जी पहिली के व्य वहार।

तेल डार के दीया बारेन हमरे तेल निकालिस
पीरा ल हरे के बल्दा ऐक्ल्हस हे निखालिस
मांगेन जगमग उजियार उल्टा बांटिस अंधियार।

होले ल जलाये बर जलायेन जम्मों डोंगरी
अब काला जलान भागगे जांघ असन मोंगरी
नैया ल डूबोये हन हमी डंडवार।

हार नइ मानन कभू हरिय र मन हे
हरिय र हरिय र भुइयां हवय हरिय र पटवा सन हे
हरिय र कोदो धान त काबर होही हाहाकार।

हरेली तिहार आय किसान मन के भारी
खैरकाडांड़ मं जाथे सब झन धरके थारी
गाय गरू ल लोंदी देके करथे नमस्कार।

दसमुन अउ डोंडों कांदा राउत डोंगरी ले लाथे
हाड़ी मं उसन के पानी गरूवा ल पीयाथे
कांदा कुसा देखके मुंह ले गिरे ल धरथे लार।
</poem>
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