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होत बालक्रीडा प्रतियोगिता, भर उत्साह लेव तुम भागस्पर्धा मं विजय अमर लव, मंय हा रखत तुम्हर पर आस।पूर्वाभ्यास करव मिहनत कर, ऊंचीकूद अउ बोरादौड़खेल करव या पल्ला दउड़व, पर सब होय नियम के साथ।”लइका मन के मन हा आगर, जे चाहत ते खुद मिल गीसखेल करे के साध मिटत हे, स्पर्धा बर पूर्वाभ्यास।पहुंचिस गुहा हा झंगलू तिर मं, किहिस -”इंहा शिक्षक दू ठोकमगर कहां शिक्षिका जगौती, ओकर दर्शन तहु कर लेंव।मंय थुकेल ला धर लेगत हंव, ओहर इंहा पढ़त नइ पाठओला इंहा बिगाड़त हव तुम, होत छात्र के भावी नाश।”कुरबुर करत गुहा हा मन मन, धरिस थुकेल के कंस के हाथशाला ले रकमिका के निकलिस, अउ आ गीस सड़क के पार।गीस ग्रामपंचायत घर तिर, जिंहा कृषक मन हें सकलायदेखत तहसीलदार के रद्दा, पर नइ आवत तहसीलदार।बंजू मन हा खेत खरीदिन, होय रजिस्ट्री उंकर जमीनमगर प्रमाणीकरण हा अटके, खाता मं लिखाय नइ नाम।पटवारी, बंजू ला बोलिस -”चहत प्रमाणीकरण हा होयतुम्मन ओकर खरचा लानव, तंह मंय करिहंव तुम्हर सहाय।साहब ला मंय रुपिया देहंव, ओहर दिही दस्तखत दानपूर्ण प्रमाणीकरण के बूता, तुम्हर नाम चढ़ जहय जमीन।”बंजू मन हा रुपिया गिन दिन, पटवारी पर हे विश्वासघूंस लेत अउ देत उहां पर, पर कोई नइ करत विरोध।अब किसान तिर काम हा नइये, शाला डहर ध्यान ला दीनअब झंगलू के मजा चखाहंय, घोड़ा रोग बेंदरा पर गीस।सुखी कोचक के उभरावत हे -”मोर बात ला सब सुन लेवझंगलू शिक्षक छात्र बिगाड़त, समय ला काटत गपशप मार।शाला तनी दृष्टि ला फेंकव, खेलत छात्र पढ़इ ला त्यागअंदर मं झंगलू हा सोवत, टेबल ऊपर रख के गोड़।शिक्षक हा कर्तव्य ले भगथय, ओला गांव मं राखन कार!ओकर स्थानांतर होवय, तभे छात्र मन के उद्धार।”झंगलू के विरुद्ध मं लिख दिन, जमों किसान शिकायत पत्रशिक्षक हा कर्तव्य निभावत, तब ले ओकर होत विरोध।धनवा डकहर करत कुजानिक, ओकर झंगलू करत विरोधसुखी अउ डकहर बल्दा लेवत, करत नमूसी कालिख नाम।झंगलू जहां खबर ला पाइस, होवत मन मं दुखी उदासछुट्टी बाद अपन घर जावत, मेहरूपहुंचिस ओकर पास।कहिथय -”एक बात सोचे हंव – कवि मन ला मंय चहत बलायकवि सम्मेलन गांव मं होवय, तंय रख सकथस अपन विचार।”झंगलू कहिथय -”मंय खुश होवत, बोले हवस बात तंय ठीकमगर गांव के स्थिति नाजुक, मुड़ पर रुसी अस दुख राज।साफ दृष्टि से यदि हम देखत, होय बंद धार्मिक त्यौहारकवि मन ला यदि करत निमंत्रित, परिहय खूब खर्च के मार।एक घांव सोनू हा लानिस, इहिच गांव मं कई विद्वानसुन्तापुर के पुरिस ठिकाना, बिकगे बर्तन अन्न मकान।”मेहरूकथय -”जेन कवि आवत, ओमन नइ मांगत कुछ खर्चमात्र पेट भर जेवन मांगत, अतका मं परिहय का फर्क!”झंगलू हा स्वीकृति फट देथय -”नेकी कर झन कर पुचपूचलुकलुकात ग्रामीण सबो झन, पर ओमन ला पहिली पूछ।”झंगलू पुन& कथय मेहरूला -”हम राखे हन जे उद्देश्य“सुम्मतराज’ गांव मं आवय, पांय सबो झन सुख आनंद।धनवा हा विरोध मं जावत, ओकर बात उमंझ मं आतपर विडम्बना हे एके ठन। ओला मंय फोरत हंव साफ-गांव मं बन्जू अस अउ मनखे, जेकर जीवन हा कुछ ऊंचओमन सोचत- हम पूंजीपति, हम्मन आन अचक धनवान।हवय जरुरत जिनिस हा पूरा, ककरो पास मंगन नइ भीखहर प्रकार ले हम सक्षम हन, हमर ले बढ़के दूसर कोन!हमर बाढ़ देखत कंगला मन, तंहने उंकर जलन बढ़ जातहम्मन ला कंगला होवय कहि, कइ योजना बनावत रोज।”झंगलू फेर कथय मेहरूला -”मोर बात सुन बन गंभीरबंजू मन हा पूंजीपति नइ, न ओमन धनवान विशिष्ट।ओमन भ्रम रद्दा मं रेंगत, एकर ले सब लक्ष्य हा नाशधनसहाय हा लाभ ला पाहय, जनता ला नंगत नुकसान।सुम्मत राज लाय बर सोचत, एकर पूर्व होय ए कामबंजू मन के भ्रम मिट जावय, ओमन करंय हमर सहयोग।”मेहरूपैस सलाह बने अस, उहां हे हटथय छुट्टी मांगथोरिक ओहिले मिलिस गरीबा, जेहर खसर खुजावत जांग।मेहरूखलखल हंस के कहिथय -”तोला कब के खजरी होयएकर दवइ करा तंय झपकुन, काबर चुप बइठे कंजूस!”“बिन श्रम रचना पढ़ धन झोरत, भरत अपन घर देश ला लूटतोला हरियर तगवा सूझत, तब तंय पर ला एल्हत खूब।वन के पशु हा खेत मं घुसरत, बिरता के करथय खुरखेदहम किसान पर आत मुसीबत, ओकर हिरक देखइया कोन!”अभी गरीबा अउ ओरियातिस, मेहरूबीच मार दिस छेंकसुनिस गरीबा तंह खुश होवत, करदिस हरहिंछा स्वीकार –“हमर गांव मं कवि मन आवत, ओमन देहंय नेक सलाहभ्रम अंधियार के नसना टुटिहय, हम्मन धरबो उत्तम राह।”मेहरूकिहिस गरीबा ला अउ -”सुम्मत राज के लेवत पक्षएकर बीच बिघन हा आवत, तंय जासूस असन रख ध्यान।भरे उच्चता बंजू मन मं, उंकर उच्चता होय समाप्तपर ए काम बहुत कठिनाई, तंय कर पूर्ण बुद्धि के साथ।”
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