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पर ऊपर के तर्क मं गल्ती, सच स्थिति फोरत मंय तेन-रिहिन क्रांतिकारी मन ज्ञानिक, क्रोध उग्रता अति के शत्रु।जेन बुता ला करना होवय, बइठक करंय शांत गंभीरस्थिर बुद्धि पांव ला लेगिन, तब हो सकिस पूर्ण उद्देश्य।अब जग मं परिवर्तन होवत, विश्वयुद्ध खतरा घटगीसशांति बुद्धि हा महिनत जोंगिस, मानव ला दिस जीवन दान।क्रोध के दृष्य दिखाना होथय, लिखना होत भयंकर युद्धलेखक शांत बुद्धि ला रखथय, तब वर्णन कर सकत सटीक।”कातिक कथय -”लुवत हस पुटपुट, मगर मदद बर मुंह ओरमातमंय नौकरी छोड़ डारे हंव, बिन अनाज मंय पावत कष्ट।”कथय गरीबा -”सुख अमरे बर, करना परत बहुत बलिदानमोर पास ले अन्न लेग अउ, जीवन सरका कर कम खर्च।यद्यपि मदद देत हंव तोला, पर एकर ले दुष्परिणामगलत परम्परा कायम होथय, सुधर पाय नइ गिरे समाज।हाथ लमाय जहां सीखत हे, झांकत हे बस पर के द्वारकाम करे बर जीव चोराथय, पर ला करत रथय बस तंग।चोरहा मन के पक्ष ला लेवत, लेकिन यहू प्रथा निंदनीयजुरुम करे बर साहस बाढ़त, नष्टभविष्य फंसड़ कानून।एक दीन हा करत कुजानिक, पर दूसर हा फल ला पातवाजिब दुखी मदद नइ पावय, मरत फसल तरसत बिन नीर।यने एक ले धोखा खावत, सब ले उड़ जावत विश्वासधोखादार सबो ला समझत, मदद करे बर झींकत हाथ।सुन कातिक, मंय केंघर बतावत, एला झनिच समझ उपदेशबन गंभीर बात ला पतिया, तथ्य हा गुरमटिया अस ठोस।काबर के समाज के अरि हा, हवय धनी दानी विद्वानगुन अवगुन छल निक सच झूठा, जमों चाल मन ओकर पास।लालच फूट प्रेम भय दिखला, भ्रष्ट करे बर पूर्ण समर्थहर आकर्षण ले जब बचिहव, तब दुश्मन के चाल नकाम।हमला ओहिले तन चलना हे, सफल बनाना हे उद्देश्यसब तन टंहकत जासूसी कर, गलत चाल रेंगय झन पांव।”दीस गरीबा हा कातिक ला अन्न एक भर बोरी।कातिक अन्न पकड़ के रेंगत सोचत भावी रद्दा।उठना चहत गरीबा हा अब, तभे पहुंच गिन कई विद्वानउंकर सुवागत करत गरीबा, मुंह मं वाजिब खुशी ला लान।जीवनयदु अउ भीखमबैष्णव, रामेश्वरबैष्णव गोपालश्यामलाल अउ मुकुन्दकौशल, मिथिलेशशर्मा रमेश अधीर।दानेश्वरशर्मा तक पहुंचिस, कवि हाजिर तेमन विख्यातऊंकर सादा नर्बदा जीवन, पर ऊंचा हे कर्म विचार।मेहरूसब के परिचय देइस, होत गरीबा बहुत प्रसन्नकवि मन के स्वागत हा होवत, मनसे मन पहुंचिन भन भन्न।अलग जगा भीखम ला लेगिस, मेहरूमांगिस उचित सलाह-“तुम्हर खाय बर काय पकावन, अपन विचार साफ फुरियाव?”खांध हाथ रख भीखम बोलिस -”हमला झन मानो मेहमानजे मिलिहय खाबो हरहिन्छा, जमों जिनिस के करथन पान।”सब ग्रामीण पास पहुंचिन तब, कवि मन ढीलत मीठ जबानउंकर हाल ला कोड़ के पूछत, उबरे बर बतात हें राह।कवि मन किंजरत खेत नार चक, जांच करत बिरता के हालभोजन चुरिस ज्ञात होथय तंह, अपन ठिंहा मं आथंय लौट।सनम बिछावत टपटप पतरी, रखत गरीबा जल के ग्लासमेहरूपरसत झपझप जेवन, कमी होत नइ ककरो पास।जीवन यदु हा हांसत बोलिस -”हम खावत कई किसम के चीजपर सुन्तापुर मं आये हन, लान गांव के प्राकृतिक चीज।सुक्सा भाजी – अमारी भुरका, करील चटनी – खोइला सागघोंटो – गांकर – सुखड़ी खुटरी, बोबरा – चंउसिला – महुवा राब।जेन जिनिस हम पहिली खावन, पर एमन दुर्लभ हें आजयदि एकाध सहेज के राखे, देव खाव बर तज के लाज।”परसइया मन मुरझुर होगिन, पर दुखिया के मुंह पर हर्षहेरिस तुरुत अमारी भुरका, पानी मं कर लिस झप गील।मिरी नून लहसुन अउ धनिया, ओमां मेल करिस हे पीसतंहने अमसुर चटनी बनगे, जेहर देवत सुघर सुगंध।दुखिया अपन हाथ मं परसिस, कवि मन जेवत स्वाद के साथआत्मा जूड़ उदर भरगिस तंह, ठंव ले उसल के धोइन हाथ।समाचार धनवा तिर पहुंचिस, बोलत हे बन्जू के पास-“हमर गांव मं जे कवि आये, इनकर कहां उच्च सिद्धान्त!जे सपड़िस सोसन भर खालिन, हिन के जिनिस करिन नइ दूरहवय गिदिरगादर अस जीवन, एमन भुखमर्रा कंगाल।हमर ददा के पहरो पहुंचिन, ख्याति प्राप्त उद्भट विद्वानओमन ला परसेन खाये बर, स्वादिल जिनिस बहुत पकवान।ओमन उत्तम चीज ला झड़किन, तब तो बता सकिन गुण ऊंचजे उपदेश दीन मिहनत कर, उच्च समाज ग्रहण कर लीस।पर अभि जे कवि आये तेमन, इनकर जीवन निम्न समानकहां उच्च सिद्धान्त ला कहिहंय, कविता रखिहंय गलत विचार।”बन्जू देवत हवय हुंकारू-”धनवा, तंय बोलत हस ठीककवि आये हें तेमन रड़ हें, लीन अमारी भुरका बोज।हमर पास यदि एमन आतिन, हमर पास पूरन सब चीजऊंकर मन के जेवन देतेन, अउ ऊपर रुपिया के दान।”धनसहाय अउ बन्जू मन हा, कवि मन ला एल्हत हें खूबओतन कवि सम्मेलन हा अब, लुकलुकात होवय प्रारंभ।मंच बने हे शाला के तिर, जेकर जगह बहुत मेल्लारआमा लीम जाम पत्ता मं, मंच के ऊपर छिद्र ला छाय।
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