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{{KKRachna
|रचनाकार=योगेंद्र कृष्णा
|संग्रह=कविता के विरुद्ध / योगेंद्र कृष्णा
}}
<poem>
तुम्हारे चेहरे पर
हंसी की संभावनाएं
ढूंढ़ता हुआ जब भी मैं
तुम्हारे करीब आता हूं
तुम्हारी आंखों में जमी
बर्फ की नदी देख कर
ठिठक जाता हूं
इतना भी ताप
क्या बचा है
मेरी आंखों में
कि पिघल जाए
तुम्हारी आंखों का संताप
और फिर से बहने लगे
तुम्हारे भीतर की नदी...
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|रचनाकार=योगेंद्र कृष्णा
|संग्रह=कविता के विरुद्ध / योगेंद्र कृष्णा
}}
<poem>
तुम्हारे चेहरे पर
हंसी की संभावनाएं
ढूंढ़ता हुआ जब भी मैं
तुम्हारे करीब आता हूं
तुम्हारी आंखों में जमी
बर्फ की नदी देख कर
ठिठक जाता हूं
इतना भी ताप
क्या बचा है
मेरी आंखों में
कि पिघल जाए
तुम्हारी आंखों का संताप
और फिर से बहने लगे
तुम्हारे भीतर की नदी...