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प्रीत तुम्हारी सुधियों इस सुलगती दुपहरी से, मिल रही जो शाम है। बेकली मन में बन हृदय वेदना जगती हैछुपाये, लग रही अभिराम है॥
गगन आसरा दे ना पायेखग विहग सब आ रहे हैं, लौट अम्बर छोर से। सागर में मालती भी वो न समायेझूमती है, खिल रही जो भोर से॥हाय पीर बिछडन की गुलमुहर भी अब बन नीर नयन से बहती हैदहक प्रिय, छीनते आराम हैं। प्रीत तुम्हारी सुधियों बेकली मन में बन हृदय वेदना जगती हैछुपाये, लग रही अभिराम है॥
हो गया सूना जीवन मेरापात सारे हिल रहे हैं, कोयलें छुपती फिरें। सपनो का अब रहा न डेरावात के सुन जोर से ही, दृग भँवर तत्क्षण तिरे॥जाते तेरे पग की ध्वनि अब बाग़ में बन लय धड़कन बजती हैमन गिलहरी, घूमता अविराम है। प्रीत तुम्हारी सुधियों बेकली मन में बन हृदय वेदना जगती हैछुपाये, लग रही अभिराम है॥
सुन के विरही मन की पुकारेंतुम मिले थे जब प्रिये तब, तप्त मेरा रंग था। दर्द की राहें बाँह पसारेकाली नीरव तम भरी रजनी अब बन नागिन डसती हैथा महीना चैत का वो, रुत रूमानी अंग था॥छू गई तब प्रीत तुम्हारी सुधियों पागल, हिय हुआ बेकाम है। बेकली मन में बन हृदय वेदना जगती है...छुपाये, लग रही अभिराम है॥
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