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Kavita Kosh से
|रचनाकार=गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'
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किसी का छीना नहीं निवास,
किसी को दिया नहीं है त्रास ।त्रास।
किया है दुखित जननों का त्राण,
हाथ में लेकर कठन कृपाण ।।कृपाण॥वही हम हैं भारत संतान—वही हम हैं भारत संतान ।।संतान॥
हमारे जन्मसिद्ध अधिकार,
अगर छीनेगा कोई यार ।यार।
रहेंगे कब तक मन को मार,
सहेंगे कब तक अत्याचार ।।अत्याचार॥
कभी तो आवेगा यह ध्यान,
सकल मनुजों के स्वत्व समान ।। समान॥ वही हम हैं भारत संतान—वही हम हैं भारत संतान ।। संतान॥
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