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एक आरज़ू / इक़बाल

No change in size, 12:28, 8 फ़रवरी 2017
दुनिया की महफ़िलों से उक्ता गया हूँ या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
शोरिश से भागता हूँ दिल ढूँडता ढूँढता है मेरा
ऐसा सुकूत जिस पर तक़रीर भी फ़िदा हो
मरता हूँ ख़ामुशी पर ये आरज़ू है मेरी
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