भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
गति मिली मैं चल पड़ा
राह अनदेखी, अजाना देश
चांद सूरज की तरह चलता
किस तरह हम तुम गए मिल
तन न आया मांगने अभिसार
देख मेरे पंख चल, गतिमय
पत्र आँचल में छिपाए मुख
एक क्षण को थम गए डैने
पर प्रबल संघर्ष बनकर
डाल झूमी, पर न टूटी