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मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
::::पथ ही मुड़ गया था।
गति मिली मैं चल पड़ा
::::पथ पर कहीं रुकना मना था,
राह अनदेखी, अजाना देश
::::संगी अनसुना था।
चांद सूरज की तरह चलता
::::न जाना रात दिन है,
किस तरह हम तुम गए मिल
::::आज भी कहना कठिन है,
तन न आया मांगने अभिसार
::::मन ही जुड़ गया था।
देख मेरे पंख चल, गतिमय
::::लता भी लहलहाई
पत्र आँचल में छिपाए मुख
::::कली भी मुस्कुराई।
एक क्षण को थम गए डैने
::::समझ विश्राम का पल
पर प्रबल संघर्ष बनकर
::::आ गई आंधी सदलबल।
डाल झूमी, पर न टूटी
::::किंतु पंछी उड़ गया था।
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